Thursday, September 6, 2018

किस देश के पास है हैकर्स की सबसे बड़ी सेना?

इस साल अगस्त महीने में हर साल की तरह, अमरीका के लास वेगस में एक ख़ास मेला लगा. ये मेला था, हैकर्स का. जिसमें साइबर एक्सपर्ट से लेकर बच्चों तक, हर उम्र के लोग हैकिंग का हुनर दिखा रहे थे.
लास वेगस में हर साल हैकर्स जमा होते हैं. इनके हुनर की निगरानी करके अमरीका के साइबर एक्सपर्ट ये समझते हैं कि हैकर्स का दिमाग़ कैसे काम करता है. वो कैसे बड़ा ऑपरेशन चलाते हैं.
जिस वक़्त हैकर्स का ये मेला लास वेगस में लगा था, ठीक उसी वक़्त हैकर्स ने एक भारतीय बैंक पर साइबर अटैक करके क़रीब 3 करोड़ डॉलर की रक़म उड़ा ली. दुनिया भर में हर वक़्त सरकारी वेबसाइट से लेकर बड़ी निजी कंपनियों और आम लोगों पर साइबर अटैक होते रहते हैं.
बीबीसी की रेडियो सिरीज़ द इन्क्वायरी में हेलेना मेरीमैन ने इस बार इसी सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश की. उन्होंने साइबर एक्सपर्ट्स की मदद से हैकर्स की ख़तरनाक और रहस्यमयी दुनिया में झांकने की कोशिश की.
1990 के दशक में सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस में बहुत से एक्सपर्ट अचानक बेरोज़गार हो गए.
ये इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर थे और गणितज्ञ थे. रोज़ी कमाने के लिए इन्होंने इंटरनेट की दुनिया खंगालनी शुरू की. उस वक़्त साइबर सिक्योरिटी को लेकर बहुत ज़्यादा संवेदनशीलता नहीं थी और न जानकारी थी.
इन रूसी एक्सपर्ट ने हैकिंग के साम्राज्य की बुनियाद रखी. इन रूसी हैकरों ने बैंकों, वित्तीय संस्थानों, दूसरे देशों की सरकारी वेबसाइट को निशाना बनाना शुरू किया. अपनी कामयाबी के क़िस्से ये अख़बारों और पत्रिकाओं को बताते थे.
रूस के खोजी पत्रकार आंद्रेई शोश्निकॉफ़ बताते हैं कि उस दौर में हैकर्स ख़ुद को हीरो समझते थे. उस दौर में रूस में हैकर्स नाम की एक पत्रिका भी छपती थी.
आंद्रेई बताते हैं कि उस दौर के हर बड़े रूसी हैकर का ताल्लुक़ हैकर पत्रिका से था. रूस की ख़ुफ़िया एजेंसी एफ़एसबी को इन हैकर्स के बारे में मालूम था.
मगर ताज्जुब की बात ये थी कि रूस की सरकार को इन हैकर्स की करतूतों से कोई नाराज़गी नहीं थी बल्कि वो तो इन हैकर्स का फ़ायदा उठाना चाहते थे.
रूसी पत्रकार आंद्रेई शॉश्निकॉफ़ बताते हैं कि एफ़एसबी के चीफ़ निजी तौर पर कई रूसी हैकर्स को जानते थे.
2007 में रूसी हैकर्स ने पड़ोसी देश एस्टोनिया पर बड़ा साइबर हमला किया. इन हैकर्स ने एस्टोनिया की सैकड़ों वेबसाइट को हैक कर लिया. ऐसा उन्होंने रूस की सरकार के इशारे पर किया था.
अगले ही साल रूसी हैकर्स ने एक और पड़ोसी देश जॉर्जिया की तमाम सरकारी वेबसाइट को साइबर अटैक से तबाह कर दिया.
रूसी पत्रकार आंद्रेई बताते हैं कि 2008 में जॉर्जिया पर हुआ साइबर हमला रूस के सरकारी हैकर्स ने किया था. ये रूस की ख़ुफ़िया एजेंसी के कर्मचारी थे.
रूस की सरकार को लगा कि वो फ्रीलांस हैकर्स पर बहुत भरोसा नहीं कर सकते. इससे बेहतर तो ये होगा कि वो अपनी हैकर आर्मी तैयार करें. रूसी हैकर्स की इसी साइबर सेना ने जॉर्जिया पर 2008 में हमला किया था.
आज की तारीख़ में रूस के पास सबसे ताक़तवर साइबर सेना है.
रूसी हैकर्स पर आरोप है कि उन्होंने अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में दख़लंदाज़ी की. उन्होंने व्हाइट हाउस पर साइबर हमला किया. नैटो और पश्चिमी देशों के मीडिया नेटवर्क भी रूसी हैकर्स के निशाने पर रहे हैं.
रूस से हुए साइबर हमले में एक ख़ास ग्रुप का नाम कई बार आया है. इसका नाम है-फ़ैंसी बियर. माना जाता है कि हैकर्स के इस ग्रुप को रूस की मिलिट्री इंटेलिजेंस चलाती है. हैकरों के इसी ग्रुप पर आरोप है कि इसने पिछले अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में दख़लंदाज़ी की थी.
रूसी पत्रकार आंद्रेई शोश्निकॉफ़ कहते हैं कि इन साइबर हमलों के ज़रिए रूस दुनिया को ये बताना चाहता है कि वो साइबर साम्राज्य का बादशाह है.
90 के दशक में हॉलीवुड फ़िल्म मैट्रिक्स से प्रभावित होकर जिन रूसी साइबर इंजीनियरों ने हैकिंग के साम्राज्य की बुनियाद रखी थी, वो आज ख़ूब फल-फूल रहा है. आज बहुत से हैकर रूस की सरकार के लिए काम करते हैं.
मगर, हैकिंग के इस खेल में रूस अकेला नहीं है.
ईरान भी हैकिंग की दुनिया का एक बड़ा खिलाड़ी है. 1990 के दशक में इंटरनेट के आने के साथ ही ईरान ने अपने यहां के लोगों को साइबर हमलों के लिए तैयार करना शुरू कर दिया था.
ईरान जैसे देशों में सोशल मीडिया, सरकार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने का बड़ा मंच होते हैं. सरकार इनकी निगरानी करती है. ईरान में हैकर्स का इस्तेमाल वहां की सरकार अपने ख़िलाफ़ बोलने वालों का मुंह बंद करने के लिए करती है.
2009 में जब ईरान में सरकार विरोधी प्रदर्शन तेज़ हो रहे थे. तब ईरान के सरकारी हैकर्स ने तमाम सोशल मीडिया अकाउंट हैक करके ये पता लगाया कि आख़िर इन आंदोलनों के पीछे कौन है. उन लोगों की शिनाख़्त होने के बाद उन्हें डराया-धमकाया और जेल में डाल दिया गया.
यानी साइबर दुनिया की ताक़त से ईरान की सरकार ने अपने ख़िलाफ़ तेज़ हो रहे बग़ावती सुर को शांत कर दिया था.
ईरान के पास रूस जैसी ताक़त वाली साइबर सेना तो नहीं है, मगर ये ट्विटर जैसे सोशल मीडिया को परेशान करने का माद्दा ज़रूर रखती है. जानकार बताते हैं कि ईरान की साइबर सेना को वहां के मशहूर रिवोल्यूशनरी गार्ड्स चलाते हैं.
ईरान में दुनिया के एक से एक क़ाबिल इंजीनियर और वैज्ञानिक तैयार होते हैं. दिक़्क़त ये है कि इनमें से ज़्यादातर पढ़ाई पूरी करने के बाद अमरीका या दूसरे पश्चिमी देशों का रुख़ करते हैं. तो, ईरान की साइबर सेना को बचे-खुचे लोगों से ही काम चलाना पड़ता है.
अमरीकी थिंक टैंक कार्नेगी एंडोमेंट के लिए काम करने वाले करीम कहते हैं कि ईरान तीसरे दर्जे की साइबर पावर है. अमरीका, रूस, चीन और इज़राइल, साइबर ताक़त के मामले में पहले पायदान पर आते हैं. यूरोपीय देशों की साइबर सेनाएं दूसरे नंबर पर आती हैं.
ईरान अक्सर साइबर हमलों के निशाने पर रहता है. ख़ास तौर से अमरीका और इसराइल से. 2012 में ईरान के तेल उद्योग पर हुए साइबर हमलों में उसके सिस्टम की हार्ड ड्राइव से डेटा उड़ा दिए गए थे. ईरान पर इस साइबर हमले के पीछे अमरीका या इसराइल का हाथ होने की आशंका थी.
ईरान ने इसी हमले से सबक़ लेते हुए तीन महीने बाद अपने दुश्मन सऊदी अरब पर बड़ा साइबर हमला किया. इस हमले में ईरान के हैकर्स ने सऊदी अरब के तीस हज़ार कंप्यूटरों के डेटा उड़ा दिए थे.
आज हैकर्स ने अपने साम्राज्य को पूरी दुनिया में फैला लिया है. कमोबेश हर देश में हैकर मौजूद हैं. कहीं वो सरकार के लिए काम करते हैं, तो कहीं सरकार के ख़िलाफ़.

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