Wednesday, September 26, 2018

कोई चेहरा दिलकश तो कोई बदसूरत क्यों लगता है?

तो, इसका जवाब हर इंसान के साथ बदलता जाएगा. कहावत भी है कि ख़ूबसूरती देखने वालों की आंखों में होती है.
हर इंसान और हर दौर के साथ ख़ूबसूरती के पैमाने बदलते रहे हैं. एक दौर था जब क्लीन शेव्ड लुक चलन में था. आज हर दूसरा शख़्स दाढ़ी बढ़ाए हुए नज़र आता है.
ज़्यादा पुरानी बात नहीं है जब महिलाओं को साइज़ ज़ीरो के पैमाने पर कस कर उनकी ख़ूबसूरती को मापा जाता था. आज हम उस दौर से आगे निकल आए हैं.
ख़ूबसूरती के इन बदलते पैमानों की वजह इंसान के विकास की प्रक्रिया है. लाखों बरस की विकास प्रक्रिया से गुज़रते हुए, ख़ूबसूरती को लेकर इंसान के पैमाने बदलते रहे हैं.
अब सुंदरता के पैमाने तय करने में क़ुदरती प्रक्रिया के साथ मीडिया और फ़ैशन इंडस्ट्री का रोल भी बढ़ गया है.
जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के कैरे बिज़नेस स्कूल में अस्टिटेंट प्रोफ़ेसर हैयांग यांग कहते हैं कि, "ख़ूबसूरती आज भी देखने वालों की आंखों में ही बसती है, मगर इस देखने वाले की निगाह बड़ी तेज़ी से बदल रही है."
हैयांग यांग एक दिलचस्प रिसर्च में शामिल रहे हैं. इस रिसर्च के मुताबिक़ सुंदरता को लेकर हमारी सोच पर दूसरों की राय का भी असर पड़ता है.
हैयांग यांग कहते हैं कि, ''इंटरनेट युग आने के बाद से लोगों की नज़र में सुंदरता के पैमाने बड़ी तेज़ी से बदल जा रहे हैं. इंसान के इतिहास में ख़ूबसूरती के पैमाने इतनी जल्दी-जल्दी कभी नहीं बदले.''
सोशल मीडिया और इंटरनेट से लगातार जुड़े होने की वजह से हम दिन भर में तमाम तस्वीरें देख डालते हैं.
टीवी पर, मोबाइल पर, लैपटॉप और कंप्यूटर पर, विज्ञापनों में, तस्वीरों की भरमार होती है. हर दूसरे चेहरे को देखते ही ख़ूबसूरती का हमारा पैमाना बदल जाता है.
तमाम डेटिंग वेबसाइट और डेटिंप ऐप, इस रफ़्तार को और तेज़ कर रहे हैं.
सिडनी यूनिवर्सिटी ने कुछ युवतियों पर रिसर्च की. इन लड़कियों को 60 मर्दों की तस्वीरें दिखाई गईं. हर तस्वीर को स्क्रीन पर एक सेकेंड के एक तिहाई से भी कम वक़्त तक दिखाया गया.
युवतियों ने हर अगली तस्वीर को पिछली से बेहतर बताया, उसे ज़्यादा दिलकश पाया या पिछली के मुक़ाबले कम ख़ूबसूरत पाया.
इसी रिसर्च में युवतियों को 242 महिलाओं की तस्वीरें दिखाई गईं. रिसर्च में शामिल युवतियों ने हर अगली तस्वीर को पिछली के मुक़ाबले या तो ज़्यादा ख़ूबसूरत बताया, या पिछली के मुक़ाबले ज़्यादा बदसूरत. यानी हर चेहरे के साथ ख़ूबसूरती के पैमाने बदलते गए.
इस रिसर्च की अगुवा रही जेसिका टॉबर्ट कहती हैं कि, ''हमारा ज़हन आंखों के ज़रिए मिल रही हर जानकारी को समझ कर उस पर सही फ़ैसला नहीं दे पाता. नतीजा ये कि वो शॉर्टकट तलाश लेता है. यही वजह है कि हमारा दिमाग़ पिछली तस्वीर के पैमाने पर अगली को कसता है. उससे पहले की तस्वीरें ज़हन में पूरी तरह से पैबस्त नहीं हो पाती हैं.''
वैज्ञानिक भाषा में इसे 'क्रमबद्ध निर्भरता' कहते हैं. आप अगर किसी कॉफी के मग को देखकर आंखें फेरते हैं और कुछ पलों बाद फिर से उस पर नज़र डालते हैं, तो आप को उम्मीद होती है कि वो मग वहीं रखा होगा.
ऑनलाइन डेटिंग ऐप पर लगातार तस्वीरें देखने पर यही होता है. हर बदलती तस्वीर के साथ ज़हन को नई जानकारी मिलती है. इस जानकारी को हमारा दिमाग़ ठीक से प्रॉसेस नहीं कर पाता. नतीजा ये कि पिछली तस्वीर को ज़हन ने जो समझा होता है, वही पैमाना अगली तस्वीर पर लागू कर देता है.
अमरीका की अज़ुसा पैसिफिक यूनिवर्सिटी की टेरीज़ा पेगोर्स कहती हैं कि, ''हमारा दिमाग़ आस-पास दिख रही चीज़ों के हिसाब से फ़ौरन ख़ुद को ढाल लेता है. मगर, आज जितनी तेज़ी से माहौल बदल जाता है, हमारा दिमाग़ ख़ुद को उतनी तेज़ी से नहीं ढाल पाता. नतीजा ये कि ख़ूबसूरती का पैमाना बड़ी तेज़ी से बदल जाता है. इसका एक नतीजा ये भी है कि आज हम एक साथी के साथ संतुष्ट नहीं रह पाते हैं.''
अगर आप असल ज़िंदगी के मुक़ाबले ऑनलाइन दुनिया में लोगों को ज़्यादा पसंद करते हैं, तो इसकी बड़ी वजह ये है कि आप ज़्यादा तस्वीरें देखते हैं, मगर बहुत कम वक़्त के लिए.
रिसर्च से ये पता चला है कि जब हम किसी की एक झलक भर पाते हैं, तो उसके प्रति ज़्यादा आकर्षित महसूस करते हैं. उसी चेहरे को लंबे वक़्त तक देखने पर वो दिलकशी नहीं महसूस होती.
इंसान जब किसी को देखता है, तो संभावित साथी तलाशता है. अब अगर महज़ एक झलक मिली है, तो उसके प्रति आकर्षण वाजिब है. क्योंकि हमारा ज़हन उसमें उम्मीद देखता है, एक साथी बना पाने की.
स्टैनफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के डेविड ईगलमैन सलाह देते हैं कि, 'अगर आप किसी को ग़लती से ज़्यादा आकर्षक पाते हैं, तो आप उस पर दूसरी निगाह ज़रूर डालें. इससे आप फ़ौरन अपनी ग़लती सुधार सकते हैं.'
लेकिन ईगलमैन आगाह करते हैं, ''हो सकता है कि पहली नज़र में कोई आप को उतना ख़ूबसूरत नज़र न आए और आप दोबारा उस पर नज़र न डालें, तो आप एक संभावित साथी को खोने का जोखिम ले रहे हैं.''
ऑनलाइन डेटिंग साइट पर अक्सर ऐसा होता है, जब आप बड़ी तेज़ी से स्वाइप करके अगली तस्वीर की तरफ़ बढ़ जाते हैं.
ईगलमैन कहते हैं कि हम जितनी तेज़ी से डेटिंग ऐप पर तस्वीरें बदलते हैं, हमारा ज़हन उतनी तेज़ी से कोई राय क़ायम नहीं कर पाता.
हमें ये बात पहले से ही मालूम है कि कई मामलों में हमारे ख़यालात हमारे मूड, माहौल और आस-पास के लोगों की राय से प्रभावित होते हैं.
लेकिन, जब भी हम नए साथी की तलाश में होते हैं, तो हमारे पास बहुत ज़्यादा जानकारी होती है. और इस जानकारी से किसी नतीजे पर पहुंचने के लिए वक़्त बहुत कम होता है. इसीलिए ख़ूबसूरती या बदसूरती को लेकर हमारे पैमाने बड़ी तेज़ी से बदल जाते हैं.
पेगोर्स कहती हैं कि इसका बड़ा फ़ायदा भी है, ''हर चेहरे के साथ ख़ूबसूरती को लेकर हमारा ख़याल बदल जाता है. यानी हम जो देखते हैं उस हिसाब से ख़ूबसूरती के पैमाने को लगातार बदल सकते हैं. हम किसी एक सोच या नुस्खे पर ही नहीं टिके रहते हैं. हमारे पास कम तस्वीरें देखकर फ़ैसला करने का विकल्प खुला होता है.''
इसके लिए ज़रूरत सिर्फ़ इस बात की होगी कि आप डेटिंग ऐप से लॉग आउट करें. मगर, ये करना, कहने से बहुत ज़्यादा मुश्किल काम है.

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